संताली : नामकरण
संताली भाषा 'आग्नेय". भाषा वर्ग में आती है। 'आग्नेय-परिवार' अनेक नामों से जाना जाता था।संताल जनजाति को 'होड़' नाम से भी जानी जाती है। 'होड़' शब्द का प्रयोग अभी तक होता आया है। जैसे-होड़ सेरेज, होड़ कहानी। संताली, हो, मुण्डारी, भूमिज एवं कुरूक মাषाओं के लिए 'कोल' शब्द का प्रयोग किया गया था, क्योंकि ये भाषाएँ भारत के कोलों द्वारा बोती जाती थी।' प्रोफेसर फ्रेडरिक् मेक्स मुलर ने संताली, हो, मुण्डारी, भूमिज एवं द्रबिड़ भाषा को अलग किया है। उन्होंने मुण्डा परिवार में संताली, मुण्डारी, हो एवं भूमिज तथा द्रबिड़ परिवार में कुरूक भाषा को रखा । 'सर जार्ज केम्पबेल ने 1866 ई में संताली मुण्डारी, हो के लिए कोलरियन' शब्द का प्रयोग किया था। लेकिन 'फ्रेंडरिक साहेब' ने 'कोलरियन' शब्द के 'रियन' को निकाल कर कोल के साथ 'मुण्डा' शब्द जोड़ दिया तथा 'कोलमुण्डा नाम रखा। इससे भी विद्वानों को सन्तुष्टी नहीं हुई, आगे चलकर 'स्क्रेफसरुंड एवं उसके बाद प्रोफेसर धोमसोन ने 'खेरवारियन या खरवारियन शब्द का प्रयोग किया। संताली, मुण्डारी, हो, भूमिज एवं खड़िया के लिए 'खेरवारी' एक ऐसा शब्द है, जो कि सभी जनजातियों के लिए विशेष उपयोगी एवं तर्कयुक्त सिद्ध हुआ। वास्तव में ये बोलियाँ आग्नेय परिवार की दो भाषाएँ है, जो कभी कोलरियन भाषा समुदाय भी कहीं गई थीं। क्योंकि ये भारत के कोल आदिवासियों द्वारा बोली जाती थी। सर मेक्समुलार महोदय ने सर्वप्रथम इस भाषा समुदाय को 'मुण्डा परिवार' नाम रखा था। विद्वानों के मत में कवल कोल, संताल एवं मुण्डा जाति की भाषा ही आस्ट्रिक या आग्नेय परिवार की भाषा समझी जाती थी तथा असाम और वर्मा के भाषाओं को मेनख्मेर भाषा के अन्तर्गत ही मानी जाती थी। परन्तु ऐसी बात नहीं है। आस्ट्रिक भाषा परिवार में अनेक जातियाँ की भाषा है। असुरी, करवा, कुरक, करमाली, कोड़ा, खड़िया, गदब, तुरी, माहाली, बीरहोड़, भूमिज, जुवाङ, सबर, हो सताल एवं मुण्डा आदि उनमें हैं। जार्ज ग्रियरसन ने भारत की भाषाओं का सर्वेक्षण किया था । उनके अनुसार 'संताली भाषा की दो उपभाषाएँ हैं-
1. करमाली भाषा-कलहा जनजाति द्वारा बोली जाती है। इसका क्षेत्र प्रमुखतः संताल
परगना, मानभूम एवं हजारीबाग है।
2. माहाली माषा-माहाली जनजाति द्वारा बोली जाती है। इसका क्षेत्र सिंहभूम, संताल
परगना है।
"According to J.Troise. The
Santal speak an independent language known- as Santali. It belong to the
Munda family languages. Which Pater W. Schmidt classified as belonging to the
Austro-Asiatic language group".
"Mr. Guha grouped the
Santals with the Proto Austroliod group since ac- cording to him there is a recial
similarity with the aborigines of Australia".
"According to J.
Troise-Santal is the most important of all the munda group of languages. It is also one of
the oldest tongues of India and according to campbell has reached a much
higher stages of development than any other sister Languages".
"According to Sir G.
Grierson. The Birhar dialect is more closely connected with mundari than with
Santal".
"According to Sunita Kumari
Chattarji. The Austric family of languages talls into two main branches.
Austro-asiatic and Austro-Nesian. The Austric languages of India are include in
the Austro-asiatic sub family, which are represented by the language of Munda
or Kol (Kalian) group confened to the Central Eastern and North Eastern India
and Khasi and Nicoberease of the monkhmer group, spoking in Meghalaya and
the Nicobar Island respectivelly.
"W.B. Oldham was of the
opinion that 'Santal' is an abbreviation of 'Samanta wala'.
"Sir John Shore earliar
mention that Santal ever reorded disignated them as 'Saontars'.
"The name of Santal
according to skrefsrud is a corruption of suontar. This was adopted by the santals when
they lived in the area arround 'Saont' now identified with Silda pargana in
Midnapur district of west Bengal.
"According to
Malley-'Santal' is an English form adopted from Hindi, which curresponds with the form Santar
used by the Bengali speaking people.
"According to Sunita Kumari
Chattarji-The name 'Santal' is the English modification of the name which
was given to them by the Bengolis. It came from the Sanskrit word 'Samanta-pala'
and it is in this form that the word is current is it Bengali 'Saontal' with the 'n'
changed to nasalisation of the previous vower group in the word.
सदरलैण्ड का विचार है कि संताल संत देश से आए हुए थे. इसलिए इनको संताल कहा
जाता है।
Post a Comment