Tantia Mama Bhīl
Tantia Mama Bhīl |
भारत में जनजातियों के वीरता बलिदान व उनकेन भारत के निर्माण में अतुलनीय बलिदान के कुटिल
और सामंती सच की इतिहास कर कभी भी जनता के सामने लेकर नहीं आया । अंग्रेज की नाक
पर दम कर बाला भारत में एक रॉबिनहुड थे जो टंट्या मामा भील से जाने जाते हैं। 1842 में खंडवा जिले की पंधान तहसील की बड़ौदा में टंट्या भील का जन्म हुआ। टंट्या
के बचपन का नाम टुंड्रा था। टंट्याका पिताजी का नाम भाऊ सिंह था, और माता की नाम जीभानि।टंट्या की मां बचपन में उसे अकेला
छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। पिता ने टंट्या को लाठी गोफन व तीर कमान चलाने का प्रशिक्षण
दिय। टंट्या ने धनुर्विद्या और लाठी चलाने मैं महारत हासिल कर लिया था। युवावस्था
में कागजबाई से उनका विवाह कराकर पिता ने
खेतीबाड़ी की जिम्मेदारी उसे सौंप दी।
भाऊ सिंह गांव के पटेल के घर में काम करते थे। पटेल बहुत
क्रूर और अत्याचारी थे ,वह गांव की
आदिवासियों के साथ मारपीट और अन्य अपराध या करता था। पटेल और उनके लोगों ने टंट्या
का मां जिवानी का हत्या कर दी। उसके कुछ वर्ष के बाद भानु सिंह का भी पटेल और उनके
लोगों ने मार डाला ।जब टांटिया जो उस समय एक किशोर थे विरोध किया तो पटेल ने गांव
की सभी भील आदिवासियों को झोपड़ी जला दी।अत्याचार और आतंक से तंग आकर टंट्या ने पाटिल को हत्या की ।
अन्न कई आदिवासी के ऊपर अत्याचार ना करें पाय इसीलिए सबसे पहले टंट्या ने कुछ युवाओं को लेकर एक दल गठित किया।टंट्या मामा वीरता
पूर्ण कार्य से प्रभावित होकर 1857 की क्रांति की नायक
श्री तात्या टोपे ने उन्हें "Guerrilla
Fight" में प्रशिक्षित दिया।प्रशिक्षन के बाद
टंट्या ने गोरिला लड़ाई में निपुण हो गया।किशोरावस्था में अंग्रेजों के साथी साहूकारों और जमींदारों
के अत्याचारों से परेशान होकर में अपने साथियों के साथ जंगल में अलग रहने लगे।एक
जगह से दूसरी जगह घूमता रहा साहूकारों से माल लूट कर गरीब लोगों के मदद करने लगा।
गरीब लोगों का सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझने के अलावा गरीब कन्याओं की शादी करना, निधन हुई लोगों की सहायता करना।
इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई । जमीदार को लूट कर गरीब लोगों में बांटने के कारण
टंट्या भील मामा आदिवासियों के लिए रॉबिनहुड बन गया। टंट्या मामा के रहते कोई
गरीब भूखा नहीं सोएगा ऐसी सोच और विश्वास
आदिवासियों दिलों में पैदा होने लगा।अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले टंट्या
मामा गरीबों की लोकप्रियता के कारण उनका जनसमर्थन काफी बड़ा था। यही जनसमर्थन
दिखने मिली जब 11 अगस्त 1886
को
पुलिस के द्वारा गिरफ्तार करके अदालत में पेश करने के लिए जबलपुर ले जाया गया इस
दौरान टंट्या मामा की एक झलक पाने के लिए जगह-जगह लोगों का जनसैलाब उमड़ा रहा था ।19 अक्टूबर 1890
टंट्या
को फांसी की सजा सुनाई गई और महू के पास
पातालपानी की जंगल में उसे गोली मार कर फेंक दिया गया ।जहां पर इस वीर पुरुष की
समाधि बनी हुई है वहां से गुजरने वाली हर ट्रेनें 2 मिनट रोक कर सलामी देती है।
लोगों का मनाता है कि आज भी टंट्या मामा का आत्मा रक्षा कर रहा है।
Tantia Bhil Temple |
Even after all these years of independence, martyr Tantya was never given the respect and honour which was due to him. With the untiring efforts of Tribal Welfare Minister Kunwar Vijay Shah, martyr Tantya was honoured at last. The state government has started awards and Utsav on his name. When the Chief Minister Shri Shivraj Singh Chouhan perform bhumipuran for constructing memorial for Tantya, it would definitely like giving golden colour to the history of India's freedom struggle.
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Johar
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